ये भी मज़ाक ही तो ह सालों से सड़कों पे संभल के चल रहा था य गालों के गड्ढों में तेर ना जाने क्यों मैं लड़खड़ाके गिर गया ह मुस्कुराओ, और ऐसे हंसो मेरी बातों प गिरता रहूँ, तेरी राहों में और इन्हीं में ही खोजूँग ये भी मज़ाक ही तो ह कैसे रातों के इरादों में अंधेरा था य आधे से चाँद सी हंस अंधेरी रातों में अब नूर बन गई क्य ए चाँद, अब चाँदनी बनके गिरो ज़र गिरते रहो मेरे आस पास, तो तेरा ही हो जाऊँग हो जाऊँगा तेरा, एहसास ह साँसें हैं जब तक हैं यहाँ, हो जाऊँ मैं तेर ये ना मेरा, अंदाज़ ह देखो मैं खुद हंस रहा अपनी बातों पे यह ऐसे तुम भी हंसो मेरी बातों प ना जाने क्या हो रहा मुझ मैं तेरा ही हो जाऊँगा, हो जाऊँग ये भी मज़ाक ही तो ह मेरी नकल हैं या असल में गिर रहे हो तुम भी? होता नहीं हैं अब यकीन क्या ये मज़ाक तो नहीं?